Amjad Khan Death Anniversary: इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में खलनायकी की दुनिया के बेताज बादशाह अमजद खान की आज पुण्यतिथि है। अमजद खान के फिल्मो के डायलॉग आज भी सिल्वर स्क्रीन पर अमर है। अमजद खान ने लगभग बीस साल के करियर में 132 से अधिक फिल्मों में काम किया। इस बात में कोई शक नहीं है की बॉलीवुड के अमजद खान उर्फ गब्बर सिंह ने 70 और 80 के दशक में अपनी सशक्त स्क्रीन उपस्थिति और संवाद अदायगी से सिनेमाघरों पर राज किया था।
अब तक की फिल्म इंडस्ट्री की पीढ़ी के लिए, वह पसंदीदा खलनायक थे और उन्होंने उल्लेखनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। खासकर अमजद खान की शोले और मुकद्दर का सिकंदर जैसी फिल्मों के डायलॉग और फिल्में आज भी एवरग्रीन है। आज उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर, यहां उनके प्रतिष्ठित संवादों पर एक नजर है जिसने उन्हें बॉलीवुड का एक अभिन्न हिस्सा बना दिया।
शोले (1975) – कितने आदमी थे?
तेरा क्या होगा कालिया?
जो डर गया … समझो मर गया।
क्या समझ कर आये थे … की सरदार बहुत खुश होगा, शाबाशी देगा?
छे गोली और आदमी तीन … बहुत नाइंसाफी है यह
यह हाथ हमको दे ठाकुर ।
लावारिस (1981) – औलाद न हो दुःख होता है … औलाद हो और मर्डर जाये बहुत दुःख होता है … लेकिन औलाद हो और नालायक, तो बर्दाश्त नहीं होता
कालीअ (1981) – दौलत का पेड़ जब भी उगता है … पाप की ज़मीन में ही उगता है।
कुत्तो और भिकारियों को अंदर आना मन है।
हिम्मतवाला (1983) – तुम्हारी यह बात सुनकर मेरा दिल हैदराबाद की तरह आबाद हो गया।
मैं तुम्हे कश्मीर से बहकर, जम्मू में गिराकर, दिल्ली में उठाकर, भोपाल में घुमाकर, मद्रास में नाचकर, कन्याकुमारी में ठोकर मारकर लंका के समुन्दर में फेंक दूंगा