Heat Wave Struggle :बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म “दो बीघा ज़मीन” याद है ना आपको ? इस फिल्म में महान अभिनेता बलराज साहनी ने कोलकाता की सड़कों पर हाथ-रिक्शा चलाने वाले शंभु के किरदार में जान डाल दी थी। तब से लेकर आज की तारीख तक कोलकाता के शंभुओं यानी हाथ-रिक्शा चालकों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया है… वही बेबसी, वही विवशता, वही गरीबी, वही घुट-घुटकर जीना!
आज़ादी के पहले अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेज ‘गुलाम भारतीय’ से रिक्शा खिंचवाने में आनंद का अनुभव करते थे। किसी बैल की तरह जब कोई भारतीय उन्हें रिक्शे में बिठाकर पसीना बहाता, हांफता, दौड़ता, गिरता-पड़ता अपने गंतव्य की ओर भागता था तो इससे उन अंग्रेजों के ईगो को संतुष्टि मिलती थी। फिर जब देश आजाद हुआ तो औपनिवेशिक गुलामी की याद दिलाने वाले हाथ-रिक्शा को लोकतंत्र व मानवता के विरुद्ध कहा जाने लगा, जो कि है भी। इस पर संज्ञान लेते हुए सरकार ने कई बार इस रिक्शे पर पाबंदी लगाई। लेकिन सामाजिक संगठनों और हेरिटेज विशेषज्ञों के दबाव में पाबंदी वापस ले ली गई।


कोलकाता में इन रिक्शों की शुरुआत 19वीं सदी के अंतिम दिनों में चीनी व्यापारियों ने की थी. तब इसका मक़सद सामान की ढुलाई था। फिर ब्रिटिश शासकों ने इसे परिवहन के सस्ते साधन के तौर पर विकसित किया। धीरे-धीरे ये रिक्शे कोलकाता की पहचान बन गए। यहां आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए विक्टोरिया मेमोरियल और हावड़ा ब्रिज के अलावा ये हाथ रिक्शे कौतूहल का विषय हैं। क्योंकि दुनिया के किसी देश में ऐसे रिक्शे नहीं चलते।
वैसे पहले की अपेक्षा कोलकाता में हाथ से चलने वाले रिक्शा की तादाद कम हुई है, लेकिन आज भी ये उत्तरी कोलकाता के बड़ा बाजार, कॉलेज स्क्वायर और मानिकतला जैसे इलाकों में चल रहे हैं। इन दिनों उत्तर भारत में पड़ रही भीषण गर्मी के बीच कोलकाता में हाथ- रिक्शा चालकों को जहां कम मुसाफिर मिल रहे हैं, वहीं भीषण गर्मी में कड़ी शारीरिक मेहनत का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है।
वहां के हाथ-रिक्शा चालकों का कहना है कि गर्मी के महीनों में यात्री आमतौर पर घर के अंदर रहना पसंद करते हैं। बिहार से आने वाले उम्रदराज रिक्शा चालक दिनेश सिंह कहते हैं, “मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। बुढ़ापे के बावजूद पेट की खातिर रिक्शा चलाना पड़ता है। मैं बूढ़ा हो गया हूं, तापमान बढ़ रहा है और मेरे बच्चे मेरा साथ नहीं देते!” उन्होंने आगे बताया कि दोपहर तक सिर्फ़ 150 रुपये कमाए हैं और उसमें से भी पचास-साठ रुपए दोपहर के खाने में खर्च हो गए। आम तौर पर वे रोज 200-300 रुपये ही कमा पाते हैं। सब किस्मत पर है। गर्मी के कारण बमुश्किल एक घंटे में एक पैसेंजर मिलता है।
एक अन्य रिक्शा चालक प्रकाश यादव ने कहा कि सरकार उन्हें कोई लाभ नहीं देती है। वे यात्रियों की मर्जी पर डिपेंड है। यादव ने कहा,”पिछले 32 सालों से इस हाथ रिक्शा को खींचकर अपना जीवन चला रहा हूं। यह बहुत निराशाजनक है कि हमें सरकार से कोई लाभ नहीं मिलता है। हम पूरी तरह से यात्रियों की मर्जी पर निर्भर हैं।”
बता दें कि कोलकाता में क्षेत्रीय मौसम विभाग ने दक्षिण बंगाल में पहले से ही चल रही भीषण गर्मी से राहत की कोई खबर नहीं दी है। मौसम विभाग ने पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, पश्चिम बर्दवान, बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर और झारग्राम जैसे जिलों में शनिवार तक प्रचंड गर्मी जारी रहने का अनुमान जताया है। शुक्रवार को पुरुलिया में कुछ स्थानों पर ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है, जबकि पश्चिम बर्दवान, बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर और झारग्राम में एक या दो स्थानों के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है।
