महाराष्ट्र सरकार ने भले ही एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान विधानसभा में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला बिल एकमत से पारित कर दिया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण पर विधानमंडल में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024 पेश किया. जिसमें मराठा समुदाय को को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है।
मराठा आरक्षण कानून में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि एक बार आरक्षण लागू हो जाने पर 10 साल बाद इसकी समीक्षा की जा सकती है जहां एक तरफ राज्य सरकार के मंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और वचन पूरा करने का दावा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने ‘सगे सोयरे’ को लागू करने की मांग को लेकर अपनी भूख हड़ताल जारी रखी है. उन्होंने ने कहा, “सरकार हमें वह दे रही है जो हम नहीं चाहते. हम अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं, लेकिन वे इसके बजाय हमें एक अलग कोटा दे रहे हैं. यदि सरकार कुनबी मराठों के रक्त संबंधियों के लिए आरक्षण पर मसौदा अधिसूचना पर चर्चा और कार्य नहीं करती है, तो हम कल आंदोलन की दिशा पर फैसला करेंगे.”
मराठाओं को अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर जरांगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार समुदाय के लिए 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, लेकिन यह ओबीसी श्रेणी के तहत होना चाहिए, न कि अलग से. इतना ही नहीं उन्होंने आरक्षण के मुद्दे को भटकाने की कोशिश के लिए सरकार की आलोचना की और आरोप लगाया कि वह मंत्री छगन भुजबल के प्रभाव में काम कर रही है, जो ओबीसी आरक्षण में मराठों के “पिछले दरवाजे से प्रवेश” का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “ओबीसी श्रेणी के बाहर एक अलग आरक्षण कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है, क्योंकि ऐसा करना आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकता है.